शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

प्यार ! प्यार ! प्यार !__क्या है यह प्यार ?


प्यार को ईश्वर प्रदान करता है.
प्यार ईमानदारी के गर्भ में होता है.
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चेतना से प्यार किया जा सकता है.
प्यार की सीमा नहीं होती, बल्कि मर्यादा होती है.
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पहले घोड़े के ऊपर बैठना सीखो, उसके बाद दौड़ना प्रारम्भ करो.

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प्यार अपनत्व और अथाह विशवास से होता है.
मुझ से करो प्यार. प्यार का वास्तविक अर्थ समझ जाओगे.
प्यार के वास्तविक स्वरूप को व्यवहार से समझा जा सकता है.
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प्रेम और सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का विशेष व्यवहार है.


सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

छोड़ दे उसको__जिसका हमें भरोसा है

मित्र श्री शैलेन्द्र ने मुझे यह लिखा__
कोई किसी का नही होता
धोखा है समझ
का
जहां भरोसा होता है वही धोखा होता है 
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मैंने कुछ इस प्रकार से व्यक्त किया है__
तो क्या छोड़ दे उसको
जिसका हमें भरोसा है
धोका तो धोका ही है
इससे हमें क्या
हमें तो भरोसा है
दूसरों से हमें क्या
कुछ उसके बिना चलता नहीं
तो जगत सारा धोका है
धोका है तो है__फिर भी हमें भरोसा है
चलेगें यों ही हम
जिस पर है भरोसा
हो तो हो धोका
मौत भी तो आती है
क्या नहीं वह धोका ?
इससे बड़ा होगा क्या
धोके पे धोका
इन्शान की कमजोरी
होता है ये धोका
चलता चल प्यारे
है साथ भरोसा..
मालिक ने बनाया
वह नहीं है धोका
प्रीत के सहारे
पार कर ये प्यारे
संसार गंगा जल है
जिसने तुझे जगाया
ये सभी है अपने
कोई नहीं हमारा
बस एक ही है न्यारा
वही सब कुछ हमारा
प्रिय ज्योत जगाता चल
ये है सब कुछ हमारा
प्रेम प्रवाह बहाता चल
यही जीवन की धारा
कौन जाने कितने प्रियजन
मिलेगें प्यार की मस्ती में
ज्ञान ज्योति को चलने में देखो
फिर पतंगा क्यों जले
प्रेम कि खातिर जो मरे
जिए तो जाने
दूर ना भागो इस जीवन से
करके देखो हमसे प्यार
इस प्यार के वे रंग होते
होते जिनसे कई अवतार
रंग रूप खुशबु है एक बहाना
दिल से दिल को छूकर देखा
प्रेम उन्होंने जाना
राम ने सबरी में देखा
सबरी ने जाना राम को
प्रेम तत्व को जाना उसने
किया जिसने सचा प्रेम
रिश्तों के शब्द नाम बिना
रचा दिया यह सब संसार
अब तो समझो उसको
समझ गए तो पार हो
प्रेम प्रीत की नोका ना छोडो
प्रिय यही उसकी ज्योत ज्वाला है..
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आपका स्नेही - यशवंत

प्रेम प्यार मुझ से भी रखना

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निधि तू किसकी निधि है 

जानू मैं किसकी तू विधि है 


हम माने तो माने कैसे 
 

जिसकी तू प्रीति है
 

माँ की ममता प्यारी है
 

निधि जिसकी तू विधि है..
 

प्रेम प्यार मुझ से भी रखना
 

माँ की ममता वह न्यारी है
 

क्या मैं तेरा हूँ  या है तू मेरी
 

फिर भी बंधन माँ का प्यारा सा
 

जहां तू है नन्ही सी मेरी भी
 

इस पथ से मिले तो क्या हुआ
 

आकर्षण तो ममता का है
 

पवित्र प्रेम को समझो प्रिय
 

माँ से पूछो रिश्ता क्या है
 

मर्म को मानो तो बतला देना
 

मुझ से तेरा रिश्ता क्या है
 

ना जानो तो ख़त लिखना
 

कि पवित्रता का रिश्ता क्या
 

जिसके दम पर है हम भी
 

फिर वस्त्र रिश्ते के कुछ भी हो 
 

पहनेगें उन्हें पवित्र प्रेम से
 

जानेगा यह जग भी सारा 
 

इन रिश्तों की इस धारा से
 

जी उठे रिश्तों की कड़ियाँ  
 

और बोल उठे माँ की ममता 
 

देना मुझे फिर इन अपनों को
 

क्या सांझ और क्या सवेरा
 

प्रभु है यह सब कुछ तेरा ही तेरा  
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*
अब बोल क्या बोले 
 

तू मेरे इन रिश्तों को
 

सपना समझे तेरी मर्जी
 

मैंने तो संजोया अपनों को
 

अब तू जाने तू क्या कहती अपनों को 

मेरा तो कहना पूर्ण हुआ

अब कहना है तुमको अपनों को
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इन्तजार है एक स्नेही का
इस स्नेही को स्नेह के लिए
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अज्ञात स्नेही - यशवंत

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

ये दीपावली याद दिलाती मन के दीप जलाने की

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ये दीपावली याद दिलाती मन के दीप जलाने की
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आओ जलाए दीप हम प्रेम प्रसंग के यहाँ सदा |
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प्रेम करें इतना करें की पवित्र आभा का दीप जले
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दीप भी जले तो ऐसा जले की लीन हम उसमें हो जाए |
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यह दीपों का उत्सव समझाता हमें प्रेम का महत्व
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मिलकर आओ ज्योति जलाए प्रेम प्रीत की इस बेला पर |
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मन का मीत बना ले इस पल को जो रहे सदा हमारे साथ
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फिर कभी तुम भूल ना जाना इस मधुर प्रेम लीला को |
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आओ तुम हम फिर दीप जलाए मन-दीप जगाने को
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वो जल जाए तो ज्योति जलाए प्रेम जगाने को |
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आओ हम सब मनाये दीप-दीपावली जगाने को
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एक दीप हम जगाये और एक जगाओ तुम
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अपने अपनों में बांटे इस प्रेम प्रीत को हम |
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