शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

आओ मीत तेरा इन्जार कर रहा हूँ..

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शिथिलता के बीज से पैदा नहीं तू
फिर क्यूँ खंडरों की नुमाईस में लगी हो
आओ मिल बनाए फिर गीत प्रेम के
हम बनाए दुनिया सबको रिझाएगी
आती आंधियां चुपके से निकल जायेगी
आँचल तुम्हारा मन्दाकिनी का सहारा
मृदुलता हमारी सुविचार देगी 
कुछ प्रिय तुम दोगी 
तो कुछ हम चलेगें
देख सपने अपने
जीवन को राह देगें
चलो प्रिय अपनी साथ तुम मेरे
दुनिया होगें मेले आँगन हमारे
कुछ तुम दिखाना कुछ दिखाई देगें
आगे बढ़कर तो देखो
जीत है हमारी
जहां झांककर देखो
प्रीत वहां हमारी
आओ मिल बनाए आशिया हमारा
जिसमें हो खुशबु हमारे प्रेम प्यार की
रोशन हो उठेगा ज़माना हमारा
अब देर किस लिए है चलना साथ मेरे
सोचती क्या है दुनिया के आडम्बरों से
रिश्ते के वस्त्र त्यागकर निकलो अब साथ
इन्जार कर रहा हूँ इन आईनों में
कौन से झरोके में तेरी आहट होगी
इन्जार इसी का मैं कर रहा हूँ
आओ मीत तेरा
इन्जार कर रहा हूँ..

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