सोमवार, 7 नवंबर 2011

जी-मेल हमारा वो घर अब तुम्हारा !

.





 प्रियवर..
तुम को ना जाने कितना प्यार होगा !
पर जो भी होगा..प्यार का सार ही होगा !
इन्तजार होता
जिन्हें..बुलबुला प्यार का !
अब
जाने इसी को..कि आकार क्या है !
उस जानने को जाने..तो निराकार क्या है !
भंवर में हम चढ़े..आकार ही निराकार वह !
निराकार में झांके तो स्वर्गाकार सामने !
फिर क्या था यह मिलना और मिलाना !
जीव की यह रचना रंग प्यार में भीगी !
देखते ही देखते बच्चों की किलकारियां !
कब सुबह होती कब सायं आती !
चलती रहेगी पीढियां हमारी !
प्रेम प्यार के गीत गा के हम बुलाते !
आओ प्रिय अब तुम हम गुनगुनाते |
*
तो कब आओगी अब तुम बतला दो..
कल खुलेगी खिड़कियाँ..देखेंगे नजारा..
जी-मेल हमारा वो घर अब तुम्हारा !

स्नेही - यशवंत

* e-mail: yashwantsingh.shekhawat@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं: