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नारी उपवन की मीत मेरी, सुन्दर संसार बसाती हो !
कभी तुम मेरी माँ बन अपने आँचल में छुपाती हो !
कभी तुम बहन बन ऊँगली पकड चलना सीखाती हो !
कभी तुम पत्नी बन उपवन के पुष्प घर ले आती हो !
कभी तुम मित्र प्रेमी बन सुन्दर माला बन जाती हो !
कभी छोटी बेटी बन प्यारेपन के पुष्प खिलाती हो !
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1 टिप्पणी:
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मुझे स्वयं को भी प्यारी लगी !
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