सोमवार, 21 नवंबर 2011

'स्पर्श' से दो दीप जलाकर देखें

प्रिय तेरे 'स्पर्श' से दो दीप जलाकर देखें
प्रेम की ज्योत को और बढ़ाकर देखें.. 
*  
स्पर्श जिसको भी किया
मिला उसको भी..


जो पाया मुझे
दिया उसको भी..


बेईमानदारी के किनारे दूर ही है
जो भी करते है साथ के साथ..


स्पर्श किया जो भी
वह साथ हमारे होते है..


चेतना बिना स्पर्श कहाँ होते है
वो ना होती तो हम यहाँ ना साथ होते..


तुमने किया स्पर्श ऐसा
हम तुम साथ होते है..


स्पर्श छुट ना पायेगा
क्यूँ इससे अस्वीकारती हो..


अब तो मानो प्रिय
ये स्पर्श है प्रेम का..


मिलता नहीं दुबारा
मालिक का दिया मिलता है..


अब तो मानो इस स्पर्श को
जो छुट ना पाये तुम से..


प्रेम का प्रसाद तुम्हे
फिर से मिल ना पायेगा..


जब प्रेम प्यार को पा लिया
वह ही उसकी आरती है..


ये लोकल ट्रेन के सफ़र
केवल अनुभवों की रचना है..


प्रेम की राह हमें देती है जीवन
जीवन में होता आनंद ही आनंद..

 
वो देगा हमें स्पर्श करने को
तुम नहीं तो और सही और नहो तो और सही..


यु तो खुश रह तेरे मिजाजों में बावली
जब सायं तेरी ढलेगी तो प्रकाश छुट जाएगा..


तब स्पर्श ना तुझे ढंग से आयेगा
तेरे मर्ज से
तू घिरी रह जायेगी..


कब आँख लगेगी तेरी
धरती पर तू सो जाएगी..


फिर कौन से जन्म में आएगी
स्पर्श का अहसास समझ ना पाएगी..


कटी पतगं के सहारे
तू कब तक चलते जायेगी..


इतनी दूर क्यूँ जाती है
फिर पास बुलाएगी..


अभी तो तेरे पास ही हूँ
फिर तू मिल ना पाएगी..


आजा बुलाता हूँ अब भी
नहीं तो सायं ढल जायेगी..


मेरे बिना जीवन अधूरा पाएगी
समाज की ये रश्में निभा ना तू पाएगी..


ये स्पर्श तू मेरा
छिपा न कभी पाएगी..


रोकता फिर भी नहीं
समाज की रश्मों से..


प्रेम तो प्रिय आत्मिक बंधन है
पवित्रता के आगे दिखता ना दिखाता है..


समाज जीवन रचना
बस यों ही चलती रहेगी..


दो पल प्रेम के तू भी संजोले
पहल तू कर अब..फोन उठा ले..


रश्म रिवाज जमाने के
आजमा कर देख ले..


स्पर्श के अहसास को भूल ना पाए
दो दीप मिलन के प्रज्लन को देख ले..


दिलों के प्रेम को रोक कर भी देख ले
प्रेम युद्ध की सीमाए छोड़कर भी देख ले..


मालिक के दिए स्पर्श को छोड़कर देख ले
फिर भी समझ में ना आये तो अपनाकर देखले..
.
स्पर्श से पैदा यह स्नेही - यशवंत

कोई टिप्पणी नहीं: