बुधवार, 9 नवंबर 2011

यहाँ कौन किसका सब झुंट,. है तो मुरलीधर उसका


*

*

हाँ__स्वयं के साथ 'अपनों के लिए' जीवन जीना  है
केवल अपनों के लिए जीता है.. वह खुद खो जाता है
यहाँ कौन किसका सब झुंट,. है तो मुरलीधर उसका
जिसको जीना खुद को हो तो.. वे राह देखते ना ही
बस मरना जिसने सीख लिया.. डर काहे का ना ही
लाशों को कब तक ढोवोगे.. जीना उनको है नहीं
वस्त्रों के आवरण से कब तक क्या छिपाओगे
देखता है वो सब.. जिसको तुम छिपाते हो
क्या है तुम्हारा.. नगापन तो द्रष्टि का
शरीर आँचल में देखो.. मिल जाएगा वो तुम्हारा
फिर जीवन जी लेना अपनों के साथ..
उस वक्त होगें वो अपनों के साथ
तो कुछ नहीं होगा छोटों के साथ
न्याय प्रियता और स्नहे मिलन
जब देगें सबको सुखद संसार
अब तो समझे प्रिय गणेश जी..  


कोई टिप्पणी नहीं: